नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को आता है। जिसे ग्रीष्मकालीन व शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। वर्षा के पश्चात् शीतऋतु दस्तक देने लगती हैं, जो धान, ज्वार, बाजरा जैसी कई खरीफ की फसलों के तैयार होने और खेतों में रबी की फसलें लहलहाने के लिए मंगल संकेत देती है।
इसी समय ऋतृ परिवर्तन व मौसम के बदलाव से कई तरह की बीमारियों से जनमानस पीड़ित होने लगता है। इन्हीं बीमारियों से मुक्त होने के लिए लोग नौ दिनों तक विशेष पवित्रता व स्वच्छता को महत्व देते हुए नौ देवियों की आराधना में हवनादि यज्ञ क्रियाएँ करते हैं। यज्ञ क्रियाओं द्वारा पुनः वर्षा होती है जिससे धन, धान्य व समृद्धि की वृद्धि होती है। वैदिक मंत्रों द्वारा सम्पन्न हवनादि क्रियाएँ शारीरिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार के कष्टों को दूर करती हैं। भगवान श्रीराम ने भी आदि शक्ति जगदम्बा की आराधना कर अत्याचारी रावण का वध किया था।
शास्त्रों में दुर्गा के नौ रूप बताए गए हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों (शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूषमांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री) की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि में मां को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु हर संभव प्रयास करते हैं क्योंकि ये नौ दिन और नौ रातें मां को बहुत प्रिय हैं। इन्हीं प्रयासों में एक है अखंड ज्योति प्रज्वलित करना। नवरात्रि के प्रथम दिन ज्योत जलाई जाती है लेकिन उससे पूर्व कुछ बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखें।
पुराणों में कहा गया है जिस वक्त तक अखंड ज्योति का संकल्प लें, उससे पूर्व वह खंडित नहीं होनी चाहिए। इसे अमंगल माना जाता हैं।
अखंड ज्योति को चिमनी से ढक कर रखें।
चंदन की लकड़ी पर घट स्थापना और ज्योति रखना शुभ होता है।
पूजा स्थल के पास सफाई होनी चाहिए। वहां कोई गंदा कपड़ा या वस्तु न रखें।
जो लोग नवरात्रों में ध्वजा बदलते हैं। वे ध्वजा को छत पर उत्तर पश्चिम दिशा में लगाएं।
पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए। जहां बैठकर पूजा अौर ध्यान लगाया जा सके।
ईशान कोण अर्थात उत्तर पूर्व को देवताअों की दिशा माना जाता है। इस दिशा में माता की प्रतिमा अौर अखंड ज्योति प्रज्वलित करना शुभ होता है।
जो माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्वलित करते हैं उन्हें इसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखना चाहिए। पूजन के समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
अखंड ज्योति के जलने का संकल्प समय पूरा हो जाए तो उसे जलने दें। स्वयं शांत होने दें, फूंक मारकर अथवा हाथ से न बुझाएं।
जिस स्थान पर अखंड ज्योति प्रज्वलित कर रहे हैं उसके आस-पास शौचालय या स्नानगृह नहीं होना चाहिए।
नवरात्रि में घी या तेल का अखंड दीप जलाने दिमाग में कभी भी नकारात्मक सोच हावी नहीं होती है और चित्त खुश और शांत रहता है।
नवरात्रि में अंखड दीप जलाना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है क्योंकि घी और कपूर की महक से इंसान की श्वास और नर्वस सिस्टम बढ़िया रहता है।
यह अखंड ज्योत इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहता है उसी प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं।
मान्यता के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो। कहा जाता है कि घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाईं ओर रखनी चाहिए अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए यानी जलती रहनी चाहिए। नवरात्रि में अखंड दीप जलाने से मां कभी अपने भक्तों से नाराज नहीं होती हैं।