जानिए महाशिवरात्रि को क्यों और केसे मनाया जाता है

MAHA SHIVRATRI

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है?

‘महाशिवरात्रि’ हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्यौहार है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि का त्यौहार फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

श्रद्धालु महाशिवरात्रि पर क्या करते हैं?

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन व्रत और पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। हिंदू धर्म में लोग इस दिन को काफी शुभ मानते है। इस दिन जो भी सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना करते हैं, तो भगवान शिव उनकी मनोकामना पूर्म करते है। भक्तगण व्रत रहकर भगवान शिव का ध्यान करते हैं तथा जल, दूध एवं फूल इत्यादि चढ़ाते हैं। इस दिन भगवान भोले शंकर की पूजा पूरे विधि पुर्वक करने से शुख शांति प्राप्त होता है। साथ ही इस व्रत को करने से जन्म और मोक्ष के चक्र से मुक्ति पा लेता है। पूरे साल में 12 शिव-त्योहर होते है जिसमे से एक महाशिवरात्रि को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी बहुत सी कथाएँ मिलती हैं जिसके चलते महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस दिन किस तरह से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और जानिए क्या है पूजा करने की विधि।

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? जानें इस त्‍योहार से जुड़ी रोचक बातें:

पहली मान्यता 1. शिवजी को नीलकंठ क्यों कहते हैं?

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पुराणों में बहुत सी कथाएँ मिलती हैं| एक कथा है कि समुद्र मंथन की | इस समुद्र मंथन में देवता और असुर दोनों ने भाग लिया। समुद्र मंथन के दौरान एक विष का मटका उत्पन्न हुआ। सब देवी देवता डर गये कि अब दुनिया तबाह हो जायेगी| इस समस्या को लेकर सब देवी देवता शिव जी के पास गये, शिव ने वह जहर पी लिया और अपने गले तक रखा, निगला नही,शिव का गला नीला हो गया और उसे नीलकंठ का नाम दिया गया| शिव ने दुनिया को बचा लिया, शिवरात्रि इसलिये भी मनाई जाती है|

दूसरी मान्यता 2. महाशिवरात्रि पर रात भर पूजा करने का कारण क्या है?

एक बार की बात है एक आदिवासी व्यक्ति था। वह भगवान् शिव का अपार भक्त था। एक बार वह जंगल में लकडियाँ लेने गया।  लकड़ी लेकर आते समय बहुत देर होने के कारण अँधेरा हो गया और वह रास्ता भूल गया। अँधेरे और रास्ता ना दिखने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाया।

ज्यादा रात होने पर जंगली जानवरों की भयानक आवाजें जंगल में सुनाई देने लगी। जंगली जानवरों के डर और उनसे बचने के लिए वह एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया। नींद आने पर पेड़ से गिरने के डर से बचने के लिए उसने एक तरकीब निकला।

उसने सोचा की वो रात भर उस पेड़ के पस्सों को तोड़ कर नीचे गिरता रहेगा ताकि उसको नींद ना आ सके और ना गिरे। उसने भगवान् शिव का नाम लेते हुए एक-एक करके पत्ते तोड़ कर नीचे गिराने लगा।

एसा करते-करते सुबह हो गयी। जिस पेड़ पर वह व्यक्ति बैठा था वह एक बेल का पेड़ था। जब उसने नीचे देखा तो उसे एक लिंग दिखा जिस पर वह हज़ार बेल के पत्ते गिरा चूका था। जिसके कारण शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे दिव्य आनंद का आशीर्वाद दिया।

तीसरी मान्यता 3. भगवान शिव किस चीज से ज्यादा प्रसन्न होते हैं?

ऐसा तथ्य भी है कि जब माता पार्वती ने उनसे पूछा था कि वह किस चीज से सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं तो भगवान शिव ने कहा कि जब उनके भक्त उनकी अराधना करते हैं तब वह बेहद प्रसन्न होते हैं।

तीसरी मान्यता 4. महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है?

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह हुआ था और इसी दिन पहला शिवलिंग प्रकट हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी बहुत सी कथाएँ मिलती हैं जिसके चलते महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शिवरात्रि के व्रत का महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है. विवाहित और अविवाहित महिलाएं इस दिन व्रत करती हैं तो उन पर माता गौरी और भगवान शंकर अपनी कृपा बनाते हैं।

कहते हैं सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।

तीसरी मान्यता 5. भगवान शिव को भोलेनाथ कहा क्यों जाता है?

आपको बता दें, शिव भक्तों का मानना है कि सभी देवों में से महादेव ही हैं, जोकि काफी सरल पूजा-भक्ति से भी प्रसन्न हो जाते हैं। शायद इसीलिए ही उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वह काफी भोले हैं।

महाशिवरात्रि  पूजा विधि

महाशिवरात्रि को मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। अगर घर के आस-पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर भी उसे पूजा जा सकता है। इस दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और पाठ करना चाहिए। शिव पुराण में महाशिवरात्रि को दिन-रात पूजा के बारे में कहा गया है और शिवालयों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने से शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है।

 शिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक भिन-भिन तरीके से किया जाता है:

  • जलाभिषेक : जो की जल (पानी) से किया जाता है।
  • दूध : दूसरा दूध से किया जाया है।

शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में 6 वस्तुओ को जरुर शामिल करना चाहिए।

  1. लोग बेलपत्र से पानी लिंग पर छिडकते है उसका तात्पर्य यह है कि शिव की क्रोध की अग्नि को शान्त करने के लिये ठन्डे पानी व पत्ते से स्नान कराया जाता है जो कि आत्मा कि शुद्धि का प्रतीक है।
  2. नहलाने के बाद लिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है।
  3. फल, फूल चढ़ाना, धन्यबाद करना भगवान की कृपा और जीवनदान, भगवान शिव इस दुनिया के रवयिता है| उनकी रचना पर धन्यवाद करना।
  4. धूप जलानाः सब अशुद्ध वायु,कीटाणु, गंदगी का नाश करने का प्रतीक है|हमारे सब संकट, कष्ट,दुःख दूर रहे, सब सुखी बसें।
  5. दिया जलानाः हमें ज्ञान दें,हमें रोशनी दें,प्रकाश दें,विद्वान बनाये, शिक्षा दें ताकि हम सदा उन्नति के पथ पर बढते रहें।
  6. पान का पत्ताः इसी से सन्तुष्ट हैं हमें जो दिया है हम उसी का धन्यवाद करते है।

 

इस दिन इन मंत्रों का जाप करें।

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– शिव बीज मंत्र

 ॐ नमः शिवाय

– शिव वंदना

ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम्।।
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्।
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम्।।

– महामृत्‍युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माम् मृतात् ।।

– द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

सौराष्ट्रे सोमनाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐ कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैधनाथ च, डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं, नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं, त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं, धुश्मेशं च शिवालये ॥
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि, सायंप्रात: पठेन्नर ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

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