भोलेनाथ का रहस्यमयी मंदिर, जहां मां गंगा खुद करती हैं शिवजी का जलाभिषेक!

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भारतीय पौराणिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कथा गंगावतरण, जिसके द्वारा भारतवर्ष की धरती पवित्र हुई, में इक्ष्वाकु वंशीय दिलीप के पुत्र भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने गंगा की धारा को देवलोक से भूलोक में उतारा। गंगावतरण की यह पौराणिक कथा तो त्रेता युग की है, परन्तु वर्तमान कलयुग में भी झारखण्ड प्रांत के रामगढ़ के एक रहस्यमयी शिवमंदिर में शिव को प्रतिक्षण अदृश्य जलस्रोत के द्वारा जल से अभिषिक्त करने का अद्भुत नजारा साक्षात् दृश्यमान है । लोक मान्यतानुसार झारखंड के रामगढ़ जिले में एक चमत्कारिक शिव मंदिर है। जिसे टूटी झरना के नाम से जाना जाता है। यहां स्वयं मां गंगा शिवलिंग पर जलाभिषेक करती हैं। मंदिर की विशेष बात यह है कि यहां अपने-आप वर्ष के बारहों महीने और चौबीसों घंटे जलाभिषेक होता रहता है। मान्यता के अनुसार इस स्थान का वर्णन पुराणों में भी है। भक्तों की आस्था है कि इस मंदिर में मांगी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो जाती है, परन्तु यह आज भी रहस्यमय बना हुआ कि आखिर जल कहाँ से आता है? अर्थात शिव को प्रतिक्षण जलाभिषिक्त करने वाली इस पानी का स्त्रोत कहाँ है? सूखा हो या बरसात, सर्दी हो या गर्मी, गंगा की नाभि से जल का बहना कभी भी बंद नहीं होता।

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झारखण्ड की राजधानी रांची से पैंतालिस किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ जिला मुख्यालय अर्थात रामगढ़ केंटोन्मेंट से लगभग आठ किलोमीटर दूर जंगल में अवस्थित इस प्राचीन शिवमंदिर को स्थानीय लोग टूटी झरना के नाम से जानते और पुकारते हैं । दरअसल टूटी झरना के मंदिर में शिवलिंग के ऊपर माँ गंगा की एक प्रतिमा स्थापित है जिसके नाभि से अपने-आप पानी की धारा उसकी हथेलियों से होता हुआ शिवलिंग पर प्रतिक्षण गिरता रहता है और शिव को जल से अभिषिक्त करता रहता है । प्रकृति के इस अद्भुत चमत्कार को देख सनातन वैदिकों का मन भी स्वत: ही स्वयम्भू को नमन करने को मचल उठता है । शिव की शक्ति और गंगा की भक्ति की यह एक अनूठी तस्वीर है। कलियुग में भगवान का ये रूप और उनका चमत्कार नास्तिक को भी आस्तिक बना देता है।

जानें… मंदिर का इतिहास
इस महादेव मंदिर को कब और किसने बनवाई पता नहीं , परन्तु वर्तमान में इसकी ऐतिहासिकता आंग्ल काल से जुडी हुई है । स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, साल 1925 में अंग्रेज इस इलाके में रेलवे लाइन बिछाने का कार्य कर रहे थे । पानी के लिए खुदाई करने के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा। कौतूहलवश अंग्रेजों ने उस स्थान की पूरी खुदाई करवाई, जिससे इस शिवमंदिर का अस्तित्व लोगों के समक्ष प्रकट हुआ अर्थात जमीन में दबा यह मंदिर पूरी तरह से नजऱ में आया। मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिवलिंग मिला और शिवलिंग के ठीक ऊपर माँ गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिवलिंग पर गिरता है। मंदिर का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि माँ गंगा की मूर्ति में कही भी कोई दूसरा सुराख नहीं है। अपने आप शिवलिंग पर गिर रहे जल को देखकर एक बार अंग्रेज भी आश्चर्यचकित हो गए थे। मान्यता है कि अदृश्य रूप से मां गंगा स्वयं भगवान शिव का जलाभिषेक करती हैं।

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यहां दो रहस्यमयी हैंडपंप भी हैं। इनसे पानी लेने के लिए लोगों को इन्हें चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि इनमें से स्वयं जल निकलता रहता है। जबकि मंदिर के समीप की नदी सूखी पड़ी हुई है परंतु अत्यधिक गर्मी में भी इन हैंडपंपों से निरंतर जल की धारा बहती रहती है। अचम्भे की बात बनी हुई है।


शिव और गंगा के चमत्कारी रूप के दर्शन करने के लिए यहाँ हमेशा श्रद्धालुओं को तांता लगा रहता है। शिवमास श्रावण मास में तो यहाँ प्रतिदिन शिवभक्त शिवोपासना हेतु आते हैं, परन्तु श्रावण के सभी सोमवार और महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव भक्तों की प्रचंड भीड़ यहाँ शिव को पूजा करने के लिए उमड़ पड़ती है और चतुर्दिक जय शिवशंकर , जय भोलेनाथ , बम बम भोले आदि शिव से सम्बंधित जय घोषों व नारों की अनुगूँज चहुंओर गुंजायमान हो उठती है ।

इच्छापूर्ण करता है यह चमत्कारी जल

भक्त शिवलिंग पर गिरने वाले जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे अपने घर ले जाकर रख लेते हैं। कहते हैं इस जल में इतनी शक्तियां समाहित हैं कि इसे ग्रहण करने के साथ ही मन शांत हो जाता है. दुखों से लड़ने की ताकत मिल जाती है। श्रद्धालुओ का कहना हैं टूटी झरना मंदिर में जो कोई भक्त भगवान के इस अदभुत रूप के दर्शन कर लेता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

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